Shreemad Bhagwat Shlok In Sanskrit
भगवद गीता, जिसे श्रीमद्भगवद्गीता भी कहा जाता है, हिंदू धर्म का एक महत्वपूर्ण ग्रंथ है। इसमें श्रीकृष्ण द्वारा अर्जुन को दिए गए उपदेश संकलित हैं। यह ग्रंथ न केवल धार्मिक है, बल्कि इसमें जीवन के अनेक गूढ़ रहस्यों और सत्य का वर्णन किया गया है। इस लेख में हम "भगवद गीता के अनमोल विचार" पर चर्चा करेंगे जो आपके जीवन को एक नई दिशा दे सकते हैं।
श्लोक 1:
संजय उवाच:
ज्यायसी चेत् कर्मणस्ते मता बुद्धिर्जनार्दन।
तत्किं कर्मणि घोरे मां नियोजयसि केशव॥
हिंदी में व्याख्या:
अर्जुन ने कहा: हे जनार्दन! यदि आप कर्म से ज्ञान को श्रेष्ठ मानते हैं, तो फिर मुझे इस भयंकर कर्म में क्यों लगाते हैं, हे केशव?
English Explanation:
Arjuna said: O Janardana, if You consider knowledge superior to action, why then do You urge me to engage in this terrible action, O Kesava?
श्लोक 2:
व्यमिश्रेणेव वाक्येन बुद्धिं मोहयसीव मे।
तदेकं वद निश्चित्य येन श्रेयोऽहमाप्नुयाम्॥
हिंदी में व्याख्या:
अर्जुन ने कहा: आप मिले-जुले वचनों से मेरी बुद्धि को भ्रमित कर रहे हैं, कृपया मुझे वह निश्चित रूप से बताएं जिससे मुझे परम कल्याण प्राप्त हो सके।
English Explanation:
Arjuna said: With these seemingly mixed instructions, You confuse my intelligence. Therefore, please tell me decisively the one path by which I may attain the highest good.
श्लोक 3:
श्रीभगवानुवाच:
लोकेऽस्मिन्द्विविधा निष्ठा पुरा प्रोक्ता मयानघ।
ज्ञानयोगेन सांख्यानां कर्मयोगेन योगिनाम्॥
हिंदी में व्याख्या:
श्रीभगवान ने कहा: हे निष्पाप अर्जुन, इस संसार में दो प्रकार की निष्ठा मैंने पहले बताई थी - ज्ञानयोग सांख्ययोगियों के लिए और कर्मयोग योगियों के लिए।
English Explanation:
The Blessed Lord said: O sinless Arjuna, I have already explained that in this world there are two kinds of paths: the path of knowledge for the discerning and the path of action for the active.
श्लोक 4:
न कर्मणामनारंभान्नैष्कर्म्यं पुरुषोऽश्नुते।
न च संन्यसनादेव सिद्धिं समधिगच्छति॥
हिंदी में व्याख्या:
कर्म का त्याग किए बिना मनुष्य निष्कर्मता (कर्म बंधन से मुक्ति) प्राप्त नहीं कर सकता, और न ही केवल संन्यास लेकर सिद्धि प्राप्त कर सकता है।
English Explanation:
A person does not achieve freedom from actions without engaging in action, nor does he attain perfection merely by renunciation.
श्लोक 5:
न हि कश्चित्क्षणमपि जातु तिष्ठत्यकर्मकृत्।
कार्यते ह्यवशः कर्म सर्वः प्रकृतिजैर्गुणैः॥
हिंदी में व्याख्या:
क्योंकि कोई भी व्यक्ति एक क्षण भी बिना कर्म किए नहीं रह सकता। प्रकृति द्वारा उत्पन्न गुणों से सभी अनिवार्य रूप से कर्म करने के लिए बाध्य होते हैं।
English Explanation:
No one can remain inactive even for a moment, for everyone is compelled to act, helplessly, according to the qualities born of nature.
श्लोक 6:
कर्मेन्द्रियाणि संयम्य य आस्ते मनसा स्मरन्।
इन्द्रियार्थान्विमूढात्मा मिथ्याचारः स उच्यते॥
हिंदी में व्याख्या:
जो व्यक्ति अपने कर्मेन्द्रियों को नियंत्रित करके भी मन से इन्द्रियों के विषयों का स्मरण करता रहता है, वह मूर्ख है और उसे मिथ्याचारी कहा जाता है।
English Explanation:
He who restrains his senses but mentally dwells upon the sense objects, certainly deludes himself and is called a hypocrite.
श्लोक 7:
यस्त्विन्द्रियाणि मनसा नियम्यारभतेऽर्जुन।
कर्मेन्द्रियैः कर्मयोगमसक्तः स विशिष्यते॥
हिंदी में व्याख्या:
हे अर्जुन, लेकिन जो मन से इन्द्रियों को नियंत्रित करता है और बिना आसक्ति के कर्मेन्द्रियों द्वारा कर्मयोग में प्रवृत्त होता है, वह श्रेष्ठ है।
English Explanation:
O Arjuna, he who controls the senses by the mind and engages in action without attachment, is indeed superior.
श्लोक 8:
नियतं कुरु कर्म त्वं कर्म ज्यायो ह्यकर्मणः।
शरीरयात्रापि च ते न प्रसिद्ध्येदकर्मणः॥
हिंदी में व्याख्या:
तुम अपने नियत कर्म को करो, क्योंकि कर्म करना निष्कर्म (कर्म का त्याग) से श्रेष्ठ है। कर्म न करने से तुम्हारी शरीर यात्रा भी नहीं चलेगी।
English Explanation:
You should perform your prescribed duty, for action is better than inaction. Even the maintenance of the body would not be possible without action.
श्लोक 9:
यज्ञार्थात्कर्मणोऽन्यत्र लोकोऽयं कर्मबन्धनः।
तदर्थं कर्म कौन्तेय मुक्तसंगः समाचर॥
हिंदी में व्याख्या:
यज्ञ के लिए किए गए कर्म के अतिरिक्त अन्य कर्म इस संसार में बंधन का कारण बनते हैं। इसलिए, हे कौन्तेय, आसक्ति से मुक्त होकर उस यज्ञ के लिए कर्म करो।
English Explanation:
Work done as a sacrifice for Vishnu has to be performed, otherwise work binds one to this material world. Therefore, O son of Kunti, perform your prescribed duties for His satisfaction, and in that way, you will always remain unattached and free from bondage.
Bhagwat Geeta Shlok In Hindi With Meaning
shreemad bhagwat geeta shlok |
श्लोक 10:
सहयज्ञाः प्रजाः सृष्ट्वा पुरोवाच प्रजापतिः।
अनेन प्रसविष्यध्वमेष वोऽस्त्विष्टकामधुक्॥
हिंदी में व्याख्या:
सृष्टिकर्ता ने प्रजा की सृष्टि करते समय कहा, "तुम लोग यज्ञ द्वारा समृद्ध होओ, यह यज्ञ तुम्हारी इच्छाओं को पूर्ण करने वाला होगा।"
English Explanation:
In the beginning, the creator Brahma created mankind along with sacrifices and said, "By this shall you prosper; this shall be the bestower of desires."
श्लोक 11:
देवान्भावयतानेन ते देवा भावयन्तु वः।
परस्परं भावयन्तः श्रेयः परमवाप्स्यथ॥
हिंदी में व्याख्या:
तुम इस यज्ञ के द्वारा देवताओं को संतुष्ट करो, और वे देवता तुम्हें संतुष्ट करेंगे। इस प्रकार परस्पर सहयोग से तुम सर्वोच्च कल्याण को प्राप्त करोगे।
English Explanation:
By this sacrifice, nourish the gods, and may the gods nourish you. Thus nourishing one another, you shall attain the supreme good.
श्लोक 12:
इष्टान्भोगान्हि वो देवा दास्यन्ते यज्ञभाविताः।
तैर्दत्तानप्रदायैभ्यो यो भुङ्क्ते स्तेन एव सः॥
हिंदी में व्याख्या:
यज्ञ से संतुष्ट होकर देवता तुम्हें इच्छित भोग प्रदान करेंगे। लेकिन जो लोग इन देवताओं को दिए बिना भोगों का उपभोग करते हैं, वे चोर हैं।
English Explanation:
The gods, being satisfied by sacrifices, will bestow upon you all the desired necessities of life. But he who enjoys these gifts without offering them to the gods is certainly a thief.
श्लोक 13:
यज्ञशिष्टाशिनः सन्तो मुच्यन्ते सर्वकिल्बिषैः।
भुञ्जते ते त्वघं पापा ये पचन्त्यात्मकारणात्॥
हिंदी में व्याख्या:
यज्ञ के अवशेषों का सेवन करने वाले सज्जन सभी पापों से मुक्त हो जाते हैं। लेकिन जो पापी अपने ही कारण के लिए भोजन पकाते हैं, वे पाप का भोग करते हैं।
English Explanation:
The devotees of the Lord are released from all kinds of sins because they eat food that is offered first for sacrifice. Others, who prepare food for personal sense enjoyment, verily eat only sin.
श्लोक 14:
अन्नाद्भवन्ति भूतानि पर्जन्यादन्नसम्भवः।
यज्ञाद्भवति पर्जन्यो यज्ञः कर्मसमुद्भवः॥
हिंदी में व्याख्या:
सभी प्राणी अन्न से उत्पन्न होते हैं, अन्न वर्षा से उत्पन्न होता है, वर्षा यज्ञ से होती है, और यज्ञ कर्मों से उत्पन्न होता है।
English Explanation:
All living bodies subsist on food grains, which are produced from rain. Rains are produced by the performance of yajna (sacrifice), and yajna is born of prescribed duties.
श्लोक 15:
कर्म ब्रह्मोद्भवं विद्धि ब्रह्माक्षरसमुद्भवम्।
तस्मात्सर्वगतं ब्रह्म नित्यं यज्ञे प्रतिष्ठितम्॥
हिंदी में व्याख्या:
जान लो कि कर्म वेद से उत्पन्न होता है, और वेद अविनाशी ब्रह्म से उत्पन्न हुआ है। इसलिए सर्वव्यापी ब्रह्म यज्ञ में सदैव प्रतिष्ठित है।
English Explanation:
Know that all actions are born of Brahma, and Brahma is born of the Imperishable. Therefore, the all-pervading Brahman is eternally situated in acts of sacrifice.
श्लोक 16:
एवं प्रवर्तितं चक्रं नानुवर्तयतीह यः।
अघायुरिन्द्रियारामो मोघं पार्थ स जीवति॥
हिंदी में व्याख्या:
इस प्रकार संसार में प्रवर्तित चक्र का जो मनुष्य अनुसरण नहीं करता है, वह पापमय, इन्द्रियों का दास, और व्यर्थ में जीवन जीता है, हे पार्थ।
English Explanation:
He who does not follow the cycle of sacrifice set forth in the Vedas lives in sin, and he is a slave to his senses and lives a futile life, O Partha.
श्लोक 17:
यस्त्वात्मरतिरेव स्यादात्मतृप्तश्च मानवः।
आत्मन्येव च संतुष्टस्तस्य कार्यं न विद्यते॥
हिंदी में व्याख्या:
लेकिन जो व्यक्ति आत्मा में ही रमण करता है, आत्मा में ही तृप्त रहता है और आत्मा में ही संतुष्ट रहता है, उसके लिए कोई कर्तव्य नहीं है।
English Explanation:
But for one who rejoices only in the self, who is self-satisfied and whose mind is stable in the self alone, for him there is no duty.
श्लोक 18:
नैव तस्य कृतेनार्थो नाकृतेनेह कश्चन।
न चास्य सर्वभूतेषु कश्चिदर्थव्यपाश्रयः॥
हिंदी में व्याख्या:
उसके लिए न तो कोई कर्म करने में और न ही कर्म न करने में कोई प्रयोजन है। और न ही सभी प्राणियों में से किसी भी वस्तु में उसकी कोई रुचि है।
English Explanation:
A self-realized person has no purpose in performing any action, nor does he have any reason not to act. Nor does he have any need to depend on any other being for anything.
श्लोक 19:
तस्मादसक्तः सततं कार्यं कर्म समाचर।
असक्तो ह्याचरन्कर्म परमाप्नोति पुरुषः॥
हिंदी में व्याख्या:
इसलिए, तू हमेशा आसक्तिरहित होकर अपने कर्तव्य का पालन कर, क्योंकि आसक्ति के बिना कर्म करने से मनुष्य परम सिद्धि को प्राप्त कर लेता है।
English Explanation:
Therefore, perform your duty diligently, without attachment, because by performing actions without attachment, one attains the Supreme.
Shreemad Bhagwat Geeta Chapter 3 Shlok with meaning
bhagwat geeta in hindi |
श्लोक 20:
कर्मणैव हि संसिद्धिमास्थिता जनकादयः।
लोकसंग्रहमेवापि संपश्यन्कर्तुमर्हसि॥
हिंदी में व्याख्या:
कर्म के द्वारा ही जनक आदि महान राजाओं ने भी परम सिद्धि प्राप्त की थी। लोक-संग्रह के लिए भी तुझे कर्म करना चाहिए।
English Explanation:
King Janaka and other kings attained perfection solely by performing their prescribed duties. Therefore, you should perform your duty, considering the welfare of the world.
श्लोक 21:
यद्यदाचरति श्रेष्ठस्तत्तदेवेतरो जनः।
स यत्प्रमाणं कुरुते लोकस्तदनुवर्तते॥
हिंदी में व्याख्या:
श्रेष्ठ पुरुष जो कुछ भी करता है, अन्य लोग उसी का अनुसरण करते हैं। वह जो भी आदर्श प्रस्तुत करता है, उसे लोक अनुगमन करते हैं।
English Explanation:
Whatever a great person does, others also follow. Whatever standard he sets, the world follows.
श्लोक 22:
न मे पार्थास्ति कर्तव्यं त्रिषु लोकेषु किञ्चन।
नानवाप्तमवाप्तव्यं वर्त एव च कर्मणि॥
हिंदी में व्याख्या:
हे पार्थ, मुझे तीनों लोकों में कुछ भी कर्तव्य नहीं है, न ही मुझे कुछ अप्राप्त प्राप्त करना है, फिर भी मैं कर्म में लगा रहता हूँ।
English Explanation:
O Partha, there is no work prescribed for Me within all the three worlds. Nor am I in want of anything, nor have I a need to obtain anything—yet I engage in action.
श्लोक 23:
यदि ह्यहं न वर्तेयं जातु कर्मण्यतन्द्रितः।
मम वर्त्मानुवर्तन्ते मनुष्याः पार्थ सर्वशः॥
हिंदी में व्याख्या:
क्योंकि यदि मैं सावधान होकर कर्म न करूँ, तो हे पार्थ, सभी मनुष्य मेरे मार्ग का अनुसरण करेंगे।
English Explanation:
If I did not carefully engage in work, O Partha, certainly all men would follow My path.
श्लोक 24:
उत्सीदेयुरिमे लोका न कुर्यां कर्म चेदहम्।
सङ्करस्य च कर्ता स्यामुपहन्यामिमाः प्रजाः॥
हिंदी में व्याख्या:
यदि मैं कर्म न करूँ, तो ये सभी लोक नष्ट हो जाएँगे। मैं मिश्रण (अराजकता) का कारण बन जाऊँगा और इस प्रकार सभी प्राणियों का विनाश कर दूँगा।
English Explanation:
If I did not perform prescribed duties, all these worlds would perish. I would be the cause of unwanted population and would destroy all living beings.
श्लोक 25:
सक्ताः कर्मण्यविद्वांसो यथा कुर्वन्ति भारत।
कुर्याद्विद्वांस्तथासक्तश्चिकीर्षुर्लोकसंग्रहम्॥
हिंदी में व्याख्या:
हे भारत, जैसे अज्ञानी लोग आसक्ति से कर्म करते हैं, वैसे ही विद्वान लोग भी लोक-संग्रह के लिए आसक्ति रहित होकर कर्म करें।
English Explanation:
O Bharata, just as ignorant people perform actions with attachment, wise people should also perform actions, but without attachment, for the welfare of the world.
श्लोक 26:
न बुद्धिभेदं जनयेदज्ञानां कर्मसङ्गिनाम्।
जोषयेत्सर्वकर्माणि विद्वान्युक्तः समाचरन्॥
हिंदी में व्याख्या:
विद्वान व्यक्ति को अज्ञानियों के कर्म में आसक्त लोगों के बुद्धि का विभाजन नहीं करना चाहिए, बल्कि उन्हें सभी कर्मों में प्रेरित करना चाहिए, स्वयं सन्निहित होकर कर्म करते हुए।
English Explanation:
The wise should not unsettle the minds of the ignorant, who are attached to fruitive actions. Instead, he should inspire them to perform all duties, while himself engaging in all kinds of activities without attachment.
श्लोक 27:
प्रकृतेः क्रियमाणानि गुणैः कर्माणि सर्वशः।
अहङ्कारविमूढात्मा कर्ताहमिति मन्यते॥
हिंदी में व्याख्या:
प्रकृति के गुणों द्वारा सभी कर्म संपन्न होते हैं। अहंकार में विमूढ़ आत्मा सोचता है कि "मैं कर्ता हूँ"।
English Explanation:
All actions are performed by the modes of material nature, but one whose mind is deluded by false ego thinks, "I am the doer."
श्लोक 28:
तत्त्ववित्तु महाबाहो गुणकर्मविभागयोः।
गुणा गुणेषु वर्तन्त इति मत्वा न सज्जते॥
हिंदी में व्याख्या:
लेकिन, हे महाबाहु, तत्वज्ञान में स्थित व्यक्ति गुण और कर्म के विभाजन को समझता है और जानता है कि "गुण गुणों में ही संलग्न होते हैं", और इसलिए वह आसक्त नहीं होता।
English Explanation:
But he who has true knowledge of the distinctions between the body, the self, and the modes of nature, O mighty-armed one, does not become attached, knowing well that the modes are merely interacting with each other.
श्लोक 29:
प्रकृतेर्गुणसम्मूढाः सज्जन्ते गुणकर्मसु।
तानकृत्स्नविदो मन्दान्कृत्स्नविन्न विचालयेत्॥
हिंदी में व्याख्या:
प्रकृति के गुणों में मोहग्रस्त होकर अज्ञानी लोग कर्मों में आसक्त हो जाते हैं। तत्वज्ञानी व्यक्ति उन्हें विचलित न करे।
English Explanation:
Bewildered by the modes of nature, the ignorant are attached to the fruits of work. A wise person should not disturb the ignorant, who are not knowledgeable.
Bhagwat Geeta Shlok With Meaning In Hindi
bhagwat geeta in sanskrit |
श्लोक 30:
मयि सर्वाणि कर्माणि संन्यस्याध्यात्मचेतसा।
निराशीर्निर्ममो भूत्वा युध्यस्व विगतज्वरः॥
हिंदी में व्याख्या:
मुझे सभी कर्मों का संन्यास करके, आत्मा में चित्त लगाकर, निःस्पृह, निरहंकारी और समस्त दुःखों से रहित होकर युद्ध करो।
English Explanation:
Renounce all your works in Me, with your mind centered in the self, free from desire and ego, and without anxiety, fight.
श्लोक 31:
ये मे मतमिदं नित्यमनुतिष्ठन्ति मानवाः।
श्रद्धावन्तोऽनसूयन्तो मुच्यन्ते तेऽपि कर्मभिः॥
हिंदी में व्याख्या:
जो मनुष्य इस मेरे मत का नित्य पालन करते हैं, श्रद्धावान और असूयारहित होकर, वे भी कर्मों से मुक्त हो जाते हैं।
English Explanation:
Those men who always follow this teaching of Mine with faith and without envy are freed from the bondage of karma.
श्लोक 32:
ये त्वेतदभ्यसूयन्तो नानुतिष्ठन्ति मे मतम्।
सर्वज्ञानविमूढांस्तान्विद्धि नष्टानचेतसः॥
हिंदी में व्याख्या:
जो लोग मेरे इस मत की अवज्ञा करते हैं और उसका पालन नहीं करते, वे सर्वज्ञानी में भी विमूढ़, नष्ट हुए और अचेत हैं।
English Explanation:
But those who, out of envy, do not follow this teaching of Mine and do not act according to it, know them to be devoid of all knowledge, lost, and devoid of reason.
श्लोक 33:
सदृशं चेष्टते स्वस्याः प्रकृतेर्ज्ञानवानपि।
प्रकृतिं यान्ति भूतानि निग्रहः किं करिष्यति॥
हिंदी में व्याख्या:
ज्ञानवान भी अपनी प्रकृति के अनुसार कार्य करता है। सभी प्राणी अपनी प्रकृति को प्राप्त होते हैं। संयम क्या करेगा?
English Explanation:
Even a knowledgeable person acts according to his nature. All beings follow their nature. What will restraint accomplish?
श्लोक 34:
इन्द्रियस्येन्द्रियस्यार्थे रागद्वेषौ व्यवस्थितौ।
तयोर्न वशमागच्छेत्तौ ह्यस्य परिपन्थिनौ॥
हिंदी में व्याख्या:
इन्द्रियों के विषय में राग और द्वेष रहते हैं। उनके वश में न हो, क्योंकि वे उसके शत्रु हैं।
English Explanation:
Attachment and aversion are stationed in each sense object. One should not come under their control, for they are his enemies.
श्लोक 35:
श्रेयान्स्वधर्मो विगुणः परधर्मात्स्वनुष्ठितात्।
स्वधर्मे निधनं श्रेयः परधर्मो भयावहः॥
हिंदी में व्याख्या:
स्वधर्म, जो कि गुणहीन भी हो, परधर्म से श्रेष्ठ है। स्वधर्म में मरना भी श्रेयस्कर है, परधर्म भयावह है।
English Explanation:
One's own duty, though devoid of merit, is preferable to the duty of another well performed. Better is death in one's own duty; the duty of another is fraught with fear.
श्लोक 36:
अर्जुन उवाच:
अथ केन प्रयुक्तोऽयं पापं चरति पूरुषः।
अनिच्छन्नपि वार्ष्णेय बलादिव नियोजितः॥
हिंदी में व्याख्या:
अर्जुन ने कहा: हे वार्ष्णेय, किस प्रेरणा से यह मनुष्य पाप कर्म करता है, यद्यपि वह नहीं चाहता, फिर भी जैसे बलात् प्रेरित किया गया हो?
English Explanation:
Arjuna said: O Varshneya, impelled by what does a man commit sin, even against his will, as if engaged by force?
श्लोक 37:
श्रीभगवानुवाच:
काम एष क्रोध एष रजोगुणसमुद्भवः।
महाशनो महापाप्मा विद्ध्येनमिह वैरिणम्॥
हिंदी में व्याख्या:
श्रीभगवान ने कहा: यह काम और यह क्रोध रजोगुण से उत्पन्न होता है। यह महाशन, महापापी, इस संसार का वैरी है, इसे जानो।
English Explanation:
The Blessed Lord said: It is lust and it is wrath, born of rajas-guna; it is the great devourer, the great sinner, know this as the enemy here.
श्लोक 38:
धूमेनाव्रियते वह्निर्यथादर्शो मलेन च।
यथोल्बेनावृतो गर्भस्तथा तेनेदमावृतम्॥
हिंदी में व्याख्या:
जैसे आग धुएँ से ढकी होती है, दर्पण मैल से और गर्भ गर्भाशय से, वैसे ही यह काम से ढका होता है।
English Explanation:
As fire is covered by smoke, a mirror by dust, and a fetus by the womb, so is this covered by lust.
श्लोक 39:
आवृतं ज्ञानमेतेन ज्ञानिनो नित्यवैरिणा।
कामरूपेण कौन्तेय दुष्पूरेणानलेन च॥
हिंदी में व्याख्या:
हे कौन्तेय, इस काम रूपी शत्रु ने ज्ञान को ढका हुआ है, जो कि हमेशा शत्रु है, दुष्पूर है और अग्नि के समान है।
English Explanation:
O Kaunteya, knowledge is covered by this eternal enemy of the wise, insatiable and burning like fire, in the form of lust.
श्लोक 40:
इन्द्रियाणि मनो बुद्धिरस्याधिष्ठानमुच्यते।
एतैर्विमोहयत्येष ज्ञानमावृत्य देहिनम्॥
हिंदी में व्याख्या:
इन्द्रिय, मन और बुद्धि इसके आसन हैं। इनके द्वारा यह देही के ज्ञान को ढक कर मोहित करता है।
English Explanation:
The senses, mind, and intelligence are said to be its seat; through them, it deludes the embodied soul by covering his knowledge.
श्लोक 41:
तस्मात्त्वमिन्द्रियाण्यादौ नियम्य भरतर्षभ।
पाप्मानं प्रजहि ह्येनं ज्ञानविज्ञाननाशनम्॥
हिंदी में व्याख्या:
इसलिए, हे भरतश्रेष्ठ, सबसे पहले इन्द्रियों को वश में करके, इस पापी को नष्ट करो, जो ज्ञान और विज्ञान का नाशक है।
English Explanation:
Therefore, O best of the Bharatas, first control the senses, and then kill this evil thing that destroys both knowledge and realization.
श्लोक 42:
इन्द्रियाणि पराण्याहुरिन्द्रियेभ्यः परं मनः।
मनसस्तु परा बुद्धिर्यो बुद्धेः परतस्तु सः॥
हिंदी में व्याख्या:
इन्द्रियों को श्रेष्ठ कहा गया है, इन्द्रियों से श्रेष्ठ मन है, मन से श्रेष्ठ बुद्धि है, और बुद्धि से भी श्रेष्ठ वह है।
English Explanation:
The senses are superior to the body, the mind is superior to the senses, intelligence is superior to the mind, and the soul is even superior to the intelligence.
श्लोक 43:
एवं बुद्धेः परं बुद्ध्वा संस्तभ्यात्मानमात्मना।
जहि शत्रुं महाबाहो कामरूपं दुरासदम्॥
हिंदी में व्याख्या:
इस प्रकार बुद्धि से परे को जानकर, आत्मा द्वारा आत्मा को संयमित करके, हे महाबाहु, उस कामरूपी दुर्जय शत्रु का वध करो।
English Explanation:
Thus knowing the self to be transcendental to material intelligence, O mighty-armed Arjuna, subdue the desire, which is the formidable enemy in the form of lust, by the mind.
ये श्लोक भगवद गीता के मूल तत्वों को समझाने में सहायक हैं। प्रत्येक श्लोक जीवन के विभिन्न पहलुओं पर प्रकाश डालता है और हमें सही मार्ग पर चलने के लिए प्रेरित करता है। इन श्लोकों के माध्यम से, हम न केवल भौतिक जीवन की समस्याओं को समझ सकते हैं, बल्कि आध्यात्मिक जागरूकता प्राप्त कर सकते हैं।
भगवद गीता के अनमोल विचार जीवन को नई दिशा देने वाले हैं। इन विचारों का पालन करके हम अपने जीवन को सार्थक बना सकते हैं। चाहे हम "भगवद गीता संस्कृत में" पढ़ें या "भगवद गीता हिंदी में," इस ग्रंथ का महत्व हर भाषा में समान है। इसलिए, गीता के विचारों को अपने जीवन में अपनाएं और एक संतुलित और सुखमय जीवन का अनुभव करें।
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